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तिरी साज़िशों से ही जुगनू मरे | शाही शायरी
teri sazishon se hi jugnu mare

ग़ज़ल

तिरी साज़िशों से ही जुगनू मरे

शाैकत हाशमी

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तिरी साज़िशों से ही जुगनू मरे
मिरी बद-दुआ है कि अब तू मरे

करे कौन फूलों के मौसम का ज़िक्र
अगर शहर में अक्स-ए-ख़ुशबू मरे

जियूँ जिस तरह कोई दरवेश हो
मरूँ जिस तरह कोई साधू मरे

मुझे तू ने मारा है जिस हाल में
उसी हाल में ज़िंदगी तू मरे

उफ़ुक़ पर लहू लहर छाने के बअ'द
किसी रोज़ ज़ुल्मत का जादू मरे