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तिरी नज़र के इशारे बदल भी सकते हैं | शाही शायरी
teri nazar ke ishaare badal bhi sakte hain

ग़ज़ल

तिरी नज़र के इशारे बदल भी सकते हैं

अशफ़ाक़ रशीद मंसूरी

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तिरी नज़र के इशारे बदल भी सकते हैं
मेरे नसीब के तारे बदल भी सकते हैं

मैं अपनी नाव भँवर से निकाल लाया हूँ
मगर ये डर है किनारे बदल भी सकते हैं

अमीर-ए-शहर की तक़रीर होने वाली है
सहर तलक ये नज़ारे बदल भी सकते हैं

ये दौर वह है कि ग़ैरों का क्या कहें साहब
हमारे हक़ में हमारे बदल भी सकते हैं