तिरी नज़र के इशारे बदल भी सकते हैं
मेरे नसीब के तारे बदल भी सकते हैं
मैं अपनी नाव भँवर से निकाल लाया हूँ
मगर ये डर है किनारे बदल भी सकते हैं
अमीर-ए-शहर की तक़रीर होने वाली है
सहर तलक ये नज़ारे बदल भी सकते हैं
ये दौर वह है कि ग़ैरों का क्या कहें साहब
हमारे हक़ में हमारे बदल भी सकते हैं
ग़ज़ल
तिरी नज़र के इशारे बदल भी सकते हैं
अशफ़ाक़ रशीद मंसूरी