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तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे | शाही शायरी
teri bhuwan ki tegh jab aai nazar mujhe

ग़ज़ल

तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
करना हुआ ज़रूर मियाँ तर्क-ए-सर मुझे

ज़ीनत है आशिक़ों को लब-ए-ख़ुश्क ओ चश्म-ए-तर
हासिल हुई है सल्तनत-ए-बहर-ओ-बर मुझे

बारीक-बीं हूँ मुझ से कहो उस मियाँ की बात
रहता है बस-कि दिल में ख़याल-ए-कमर मुझे

बे-ख़ुद हूँ इस क़दर कि नहीं दिल को शौक़-ए-मय
उस मस्त कि निगह का हुआ है असर मुझे

मैं कोह ओ दश्त एक क़दम में किया है तय
मजनूँ ओ कोहकन की नहीं कुछ ख़बर मुझे

जब सीम-बर के ग़म से हुआ रंग जूँ तला
तब सब ने जा अज़ीज़ किया मिस्ल-ए-ज़र मुझे

'हातिम' हुआ हूँ आल-ए-नबी की पनाह में
दुनिया ओ दीं के ग़म से नहीं कुछ ख़तर मुझे