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तिरी आँखों में इक मुबहम फ़साना ढूँढ ही लेगा | शाही शायरी
teri aankhon mein ek mubham fasana DhunDh hi lega

ग़ज़ल

तिरी आँखों में इक मुबहम फ़साना ढूँढ ही लेगा

अताउर्रहमान जमील

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तिरी आँखों में इक मुबहम फ़साना ढूँढ ही लेगा
दिल-ए-बर्बाद जीने का बहाना ढूँढ ही लेगा

ये दुनिया है यहाँ हर आबगीना टूट जाता है
कहीं छुपते फिरो आख़िर ज़माना ढूँढ ही लेगा

किसी का नक़्श-ए-पा तो मिल ही जाएगा जो आँखें हैं
अगर सर है तो कोई आस्ताना ढूँढ ही लेगा

कहीं तो उम्र भर की बे-क़रारी ले ही जाएगी
कोई दश्त-ए-जुनूँ तेरा दिवाना ढूँढ ही लेगा

'जमील' इक ग़म-ए-फ़रोश-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत सही लेकिन
तुम्हारे शहर में कोई ठिकाना ढूँढ ही लेगा