तिरी आँखों में इक मुबहम फ़साना ढूँढ ही लेगा
दिल-ए-बर्बाद जीने का बहाना ढूँढ ही लेगा
ये दुनिया है यहाँ हर आबगीना टूट जाता है
कहीं छुपते फिरो आख़िर ज़माना ढूँढ ही लेगा
किसी का नक़्श-ए-पा तो मिल ही जाएगा जो आँखें हैं
अगर सर है तो कोई आस्ताना ढूँढ ही लेगा
कहीं तो उम्र भर की बे-क़रारी ले ही जाएगी
कोई दश्त-ए-जुनूँ तेरा दिवाना ढूँढ ही लेगा
'जमील' इक ग़म-ए-फ़रोश-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत सही लेकिन
तुम्हारे शहर में कोई ठिकाना ढूँढ ही लेगा
ग़ज़ल
तिरी आँखों में इक मुबहम फ़साना ढूँढ ही लेगा
अताउर्रहमान जमील