EN اردو
तिरे सितम की ज़माना दुहाई देता है | शाही शायरी
tere sitam ki zamana duhai deta hai

ग़ज़ल

तिरे सितम की ज़माना दुहाई देता है

ख़ाक़ान ख़ावर

;

तिरे सितम की ज़माना दुहाई देता है
कभी ये शोर तुझे भी सुनाई देता है

शजर से टूटने वाले हर एक पत्ते में
तिरे बिछड़ने का मंज़र दिखाई देता है

जो दिल में बात हो खुलती नहीं किसी पे मगर
कहे जो आँख वो सब को सुनाई देता है

मैं इख़्तियार तुम्हें अपना सौंप दूँ कैसे
कभी ख़ुदा भी किसी को ख़ुदाई देता है

उदास रात के आँगन में डूबता साया
बिछड़ने वाले का पैकर दिखाई देता है

ख़िज़ाँ-मिज़ाज है वो छोड़ दो उसे 'ख़ावर'
वो मौसमों के सफ़र में जुदाई देता है