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तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है | शाही शायरी
tere pahlu mein tere dil ke qarin rahna hai

ग़ज़ल

तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है

अशफ़ाक़ हुसैन

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तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है
मेरी दुनिया है यही मुझ को यहीं रहना है

काम जो उम्र-ए-रवाँ का है उसे करने दे
मेरी आँखों में सदा तुझ को हसीं रहना है

दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख
मैं भी तेरा हूँ मुझे भी तो कहीं रहना है

आसमाँ से कोई उतरा न सहीफ़ा न सही
तू मिरा दीं है मुझे साहिब-ए-दीं रहना है

जैसे सब देख रहे हैं मुझे इस तरह न देख
मुझ को आँखों में नहीं दिल में मकीं रहना है

फूल महकेंगे यूँही चाँद यूँही चमकेगा
तेरे होते हुए मंज़र को हसीं रहना है

मैं तिरी सल्तनत-ए-हुस्न का बाशिंदा हूँ
अब मुझे और कहीं जा के नहीं रहना है