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तिरे एहसास में डूबा हुआ मैं | शाही शायरी
tere ehsas mein Duba hua main

ग़ज़ल

तिरे एहसास में डूबा हुआ मैं

सिराज फ़ैसल ख़ान

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तिरे एहसास में डूबा हुआ मैं
कभी सहरा कभी दरिया हुआ मैं

तिरी नज़रें टिकी थीं आसमाँ पर
तिरे दामन से था लिपटा हुआ मैं

खुली आँखों से भी सोया हूँ अक्सर
तुम्हारा रास्ता तकता हुआ मैं

ख़ुदा जाने के दलदल में ग़मों के
कहाँ तक जाऊँगा धँसता हुआ मैं

बहुत पुर-ख़ार थी राह-ए-मोहब्बत
चला आया मगर हँसता हुआ मैं

कई दिन बाद उस ने गुफ़्तुगू की
कई दिन बा'द फिर अच्छा हुआ मैं