तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
नहीं देखे आज तक अब्र में मुझे अब दिखाने को अख़्तर आ
शब-ए-व'अदा तू अगर आए है तो दरंग क्या है मिरे घर आ
कि ये आँखें लग रही दर से हैं शब-ए-रशक-ए-मह ब-ख़ुदा दर आ
मिरे सर पे हर घड़ी फ़ाख़्ता करे काम क्यूँकि न अर्रे का
क़द-ए-दिल-रुबा के हुज़ूर तू न चमन में बन के सनोबर आ
मिरे तन से सर को जुदा कर अब नहीं ख़ूँ-बहा की मुझे तलब
कि ये तन ये बार-ए-गिराँ है बस कहीं तेग़ ले के सितमगर आ
ये मकाँ हैं दोनों तिरे लिए नहीं ग़ैर का है यहाँ गुज़र
जो तू चश्म में नहीं आए है मिरे दिल में यार सुखनवर आ
तिरी राह देखूँ मैं ता-कुजा कहूँ किस से ये कि ख़बर ही ला
मिरा उस से ले के जवाब-ए-ख़त कहीं जल्द उड़ के कबूतर आ
ब-जुज़ अब्र दे बुत-ए-बादा-कश नहीं दिल के वास्ते जाए-ख़ुश
कि ये शीशा और वो ताक़ है तू 'नसीर' जा के उसे धर आ
ग़ज़ल
तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
शाह नसीर