EN اردو
तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है | शाही शायरी
tere baghair ajab bazm-e-dil ka aalam hai

ग़ज़ल

तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है

शकील बदायुनी

;

तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है
चराग़ सैंकड़ों जलते हैं रौशनी कम है

जो जी रहे हैं उन्ही के लिए हर इक ग़म है
ज़हे-नसीब कि फूलों की ज़िंदगी कम है

क़फ़स से आए चमन में तो बस यही देखा
बहार कहते हैं जिस को ख़िज़ाँ का आलम है

ख़याल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो यारब
कुछ आज मस्त निगाहों की बे-रुख़ी कम है

बनाए हैं इसी शबनम ने सैंकड़ों दरिया
नहीं मलाल जो दरिया हरीफ़-ए-शबनम है

कहा ये दिल ने सुनी गुफ़्तुगू जो नासेह की
मुबालग़ा है बहुत इस में वाक़िआ कम है

बहार आए चमन में ये इंतिज़ार न देख
'शकील' अपने जुनूँ की बहार क्या कम है