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तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है | शाही शायरी
tere aate hi sab duniya jawan malum hoti hai

ग़ज़ल

तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है

सिकंदर अली वज्द

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तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है
ख़िज़ाँ रश्क-ए-बहार-ए-जावेदाँ मालूम होती है

जुनून-ए-सज्दा-रेज़ी का ये आलम है मआ'ज़-अल्लाह
हर इक चौखट तिरा ही आस्ताँ मालूम होती है

उसे हर अहल-ए-दिल पहरों मज़े ले ले के सुनता है
मिरी बिपता हदीस-ए-दिलबराँ मालूम होती है

कटे हैं दिन बलाओं के सहारे जिन असीरों के
उन्हें बिजली भी शाख़-ए-आशियाँ मालूम होती है

मआल-ए-ज़िंदगानी की हक़ीक़त खुल गई जब से
कसक दिल की मता-ए-दो-जहाँ मालूम होती है

ख़याल-ए-ऐश की परछाईं से भी दिल लरज़ता है
निगाह-ए-हुस्न अब क्यूँ मेहरबाँ मालूम होती है

ख़ुदा शायद है मेरे भूलने वाले ब-जुज़ तेरे
मुझे तख़्लीक़-ए-आलम राएगाँ मालूम होती है

किसी की जुस्तुजू में 'वज्द' उस मंज़िल पे पहुँचा हूँ
जहाँ मंज़िल भी गर्द-ए-कारवाँ मालूम होती है