EN اردو
तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ | शाही शायरी
tere aasman ki zamin ho gaya hun

ग़ज़ल

तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

;

तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ
हुआ हूँ तो अपने तईं हो गया हूँ

मिली है जगह दिल में थोड़ी सी उस के
समझ लो कि गोशा-नशीं हो गया हूँ

यहाँ पर मैं होना नहीं चाहता था
मगर होते होते यहीं हो गया हूँ

तिरे पाँव पड़ने से इंकार कर दूँ
मैं इतना तो ख़ुद-सर नहीं हो गया हूँ

जहाँ मुझ को होने से रोका था उस ने
नहीं बाज़ आया वहीं हो गया हूँ

मकाँ जिस का नक़्शा अभी बन रहा है
मैं फ़िलहाल उस का मकीं हो गया हूँ

तवज्जोह का तालिब हूँ इस तरह से भी
अगर आप का नुक्ता-चीं हो गया हूँ

बुढ़ापे से अगली ये मंज़िल है कोई
जवाँ हो गया हूँ हसीं हो गया हूँ

इसे भी 'ज़फ़र' मेरी हिम्मत ही समझो
कहीं हो न पाया कहीं हो गया हूँ