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तिरा नियाज़-मंद हूँ नियाज़ के बग़ैर भी | शाही शायरी
tera niyaz-mand hun niyaz ke baghair bhi

ग़ज़ल

तिरा नियाज़-मंद हूँ नियाज़ के बग़ैर भी

जावेद सबा

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तिरा नियाज़-मंद हूँ नियाज़ के बग़ैर भी
दलील के बग़ैर भी जवाज़ के बग़ैर भी

मिसाल क्या कि सर-ब-सर तिरा वजूद शाएरी
कलाम के बग़ैर भी बयाज़ के बग़ैर भी

तिरी तलब का फ़ासला ख़लिश ने तय करा दिया
सुलूक के बग़ैर भी लिहाज़ के बग़ैर भी

गुज़र रही थी ज़िंदगी गुज़र रही है ज़िंदगी
नशेब के बग़ैर भी फ़राज़ के बग़ैर भी

तिरी निगाह-ए-ख़ुद-निगर दिलों को मात कर गई
लड़ाई के बग़ैर भी महाज़ के बग़ैर भी

रवा है इश्क़ में रवा मगर ये सज्दा-ए-वफ़ा
अज़ान के बग़ैर भी नमाज़ के बग़ैर भी