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तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ | शाही शायरी
tera nasib banun teri chahaton mein rahun

ग़ज़ल

तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ

नाज़ बट

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तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ
तमाम उम्र मोहब्बत की वहशतों में रहूँ

ख़ुमार हसरत-ए-दीदार में रहूँ हर दम
सवाद-ए-इश्क़ यूँही तेरी शिद्दतों में रहूँ

ये ज़िंदगी की हरारत तिरे सबब से है
मैं लम्हा लम्हा जुनूँ की तमाज़तों में रहूँ

ये एहतिमाम-ए-शब-ओ-रोज़ हो मिरी ख़ातिर
तिरे ख़याल की रंगीन ख़ल्वतों में रहूँ

सँवारती हैं सदा जिस की चाहतें मुझ को
मिरी दुआ है कि मैं उस की हसरतों में रहूँ

ऐ अब्र-ए-वस्ल बरस और खुल के मुझ पे बरस
मैं भीगी भीगी हवा की शरारतों में रहूँ

शरीक-ए-शौक़-ए-सफ़र है अगर वो मेरा 'नाज़'
मैं क्यूँ न मौसम-ए-गुल की बशारतों में रहूँ