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तिरा कुश्ता उठाया अक़रबा ने | शाही शायरी
tera kushta uThaya aqraba ne

ग़ज़ल

तिरा कुश्ता उठाया अक़रबा ने

बयान यज़दानी

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तिरा कुश्ता उठाया अक़रबा ने
चले महशर को मिट्टी में दबाने

नफ़स गुम और सुख़न बाक़ी रहेगा
न होगा तार और होंगे तराने

ख़ुदा ठंडा रखे ऐ शम्अ तुझ को
खड़ी रोती है बेकस के सिरहाने

तिरे चलने से सीने में ज़मीं के
उठा इक दर्द महशर के बहाने

हमीं ने पंजा-ए-दस्त-ए-जुनूँ से
किए हैं कोह की चोटी में शाने