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तिरा ख़याल मुझे इस तरह पुकारता है | शाही शायरी
tera KHayal mujhe is tarah pukarta hai

ग़ज़ल

तिरा ख़याल मुझे इस तरह पुकारता है

जगदीश प्रकाश

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तिरा ख़याल मुझे इस तरह पुकारता है
कि मंदिरों में कोई आरती उतारता है

हिलोरें लेती है कुछ इस तरह तिरी यादें
नदी में जैसे कोई कश्तियाँ उतारता है

ख़मोशियों के बिछौने पे शब के पिछले पहर
तिरा ख़याल नई आरज़ू उभारता है

तिरी वफ़ाओं के मौसम बदलते रहते हैं
मिरी वफ़ा का चमन बस तुझे निहारता है

कुछ आहटें सी कहीं हो रही हैं दिल के क़रीब
कोई तो है जो मिरी बज़्म-ए-जाँ सँवारता है

मुझे तो अपने अक़ीदों की पुख़्तगी है अज़ीज़
नहीं ये ख़ौफ़ कोई सर मिरा उतारता है