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तिरा हुस्न है वो सहबा कि कोई मिसाल क्या दे | शाही शायरी
tera husn hai wo sahba ki koi misal kya de

ग़ज़ल

तिरा हुस्न है वो सहबा कि कोई मिसाल क्या दे

गौहर उस्मानी

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तिरा हुस्न है वो सहबा कि कोई मिसाल क्या दे
कभी तिश्नगी बुझा दे कभी तिश्नगी बढ़ा दे

ये जहाँ है इक तमाशा कोई दोस्त है न दुश्मन
वही आग रौशनी दे वही आशियाँ जला दे

ये तरीक़-ए-दिलबरी है कि अदा-ए-दिल-नवाज़ी
किसी जुर्म पर नवाज़े किसी जुर्म पर सज़ा दे

अभी ज़ुल्मत-ए-ख़िरद में है वफ़ा की ताबनाकी
ये चराग़ बुझ न जाए कोई इस की लौ बढ़ा दे

ये क़दम क़दम पे ज़ुल्मत ये रविश रविश अँधेरे
मिरी बे-ख़ुदी कहाँ है मुझे रास्ता बता दे

ये तसव्वुर-ए-रिहाई रहे क्यूँ नज़र में 'गौहर'
मुझे क़ैद करने वाले मिरे बाल-ओ-पर जला दे