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तिरा ग़म जब से कम होने लगा है | शाही शायरी
tera gham jab se kam hone laga hai

ग़ज़ल

तिरा ग़म जब से कम होने लगा है

ख़ुर्शीदुल इस्लाम

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तिरा ग़म जब से कम होने लगा है
हमें भी अपना ग़म होने लगा है

हम अपने हाल से डरने लगे हैं
कि ग़म-ख़्वारों को ग़म होने लगा है

हमारी रास्ती के सामने अब
हमारा क़द भी ख़म होने लगा है

अता करते हैं जो अहल-ए-तवाज़ो'
वो बादा हम को सम होने लगा है

वजूद-ए-आदमी से पेशतर ही
सिर्र-ए-आदम क़लम होने लगा है

कोई चेहरा कोई नग़्मा कोई जाम
ख़फ़ा दुनिया से दम होने लगा है

सनम पहले ख़ुदा था अब ख़ुदा भी
तराशीदा सनम होने लगा है