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तिरा ग़म अश्क बन कर आ गया है | शाही शायरी
tera gham ashk ban kar aa gaya hai

ग़ज़ल

तिरा ग़म अश्क बन कर आ गया है

राहत सरहदी

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तिरा ग़म अश्क बन कर आ गया है
कि फिर आगे समुंदर आ गया है

ब-ज़ाहिर ख़ुश्क-साली है घरों पर
मगर सैलाब अंदर आ गया है

नया पैग़ाम शीशे पर लिखूँगा
कि मेरे हाथ पत्थर आ गया है

सहारा क्या दिया गिरते मकाँ को
कि मलबा मेरे ऊपर आ गया है

यहाँ पर भी वही सहरा है 'राहत'
मैं समझा था मिरा घर आ गया है