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तिरा आँचल इशारे दे रहा है | शाही शायरी
tera aanchal ishaare de raha hai

ग़ज़ल

तिरा आँचल इशारे दे रहा है

अकबर हमीदी

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तिरा आँचल इशारे दे रहा है
फ़लक रौशन सितारे दे रहा है

हवा सहला रही है उस के तन को
वो शोला अब शरारे दे रहा है

खुले हैं फूल हर-सू जैसे कोई
तिरा सदक़ा उतारे दे रहा है

गुज़रने वाले कब थे हिज्र के दिन
मगर आशिक़ गुज़ारे दे रहा है

जुनूबी एशिया को जैसे 'अकबर'
ये दिन कोई उधारे दे रहा है