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थी नज़ारे की घात आँखों में | शाही शायरी
thi nazare ki ghat aankhon mein

ग़ज़ल

थी नज़ारे की घात आँखों में

सय्यद अाग़ा अली महर

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थी नज़ारे की घात आँखों में
कट गई सारी रात आँखों में

देखो उन आँखों की सुख़न-गोई
है शरारत की बात आँखों में

तल्ख़ बातें हैं मीठी नज़रें हैं
ज़हर मुँह में बनात आँखों में

रोना क़िस्मत में है मरूँ क्यूँकर
है ये आब-ए-हयात आँखों में

वो जो देखे जियूँ न देखे मरूँ
है हयात-ओ-ममात आँखों में

देखिए चश्म-ए-अफ़्व-ए-रहमत से
'मेहर' की है नजात आँखों में