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थी मिरी हम-सफ़री एक दुआ उस के लिए | शाही शायरी
thi meri ham-safri ek dua uske liye

ग़ज़ल

थी मिरी हम-सफ़री एक दुआ उस के लिए

मोहम्मद अहमद रम्ज़

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थी मिरी हम-सफ़री एक दुआ उस के लिए
ये बिछड़ना है बड़ी सख़्त सज़ा उस के लिए

अब कोई सिलसिला-ए-तर्क-ओ-तलब ही न रहा
आँख में एक भी मंज़र न रुका उस के लिए

उस के ख़्वाबों को न दे मौसम-ए-ताबीर मिरा
कोई पैग़ाम न ले जाए सबा उस के लिए

हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
कोई तस्वीर मुकम्मल न बना उस के लिए

मैं उसे भूल भी जाऊँ मगर ऐ बे-ख़बरी
मेरी चुप उस के लिए मेरी नवा उस के लिए

'रम्ज़' दे जाए तो क्या रंग कोई मेरा लहू
'रम्ज़' पिस जाए तो किया बर्ग-ए-हिना उस के लिए