EN اردو
थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में | शाही शायरी
tham gaya dard ujala hua tanhai mein

ग़ज़ल

थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में

अहमद मुश्ताक़

;

थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में
बर्क़ चमकी है कहीं रात की गहराई में

बाग़ का बाग़ लहू रंग हुआ जाता है
वक़्त मसरूफ़ है कैसी चमन-आराई में

शहर वीरान हुए बहर बयाबान हुए
ख़ाक उड़ती है दर ओ दश्त की पहनाई में

एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में

उस तमाशे में नहीं देखने वाला कोई
इस तमाशे को जो बरपा है तमाशाई में