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ठहरे पानी में निहाँ एक हसीं ख़्वाब भी है | शाही शायरी
Thahre pani mein nihan ek hasin KHwab bhi hai

ग़ज़ल

ठहरे पानी में निहाँ एक हसीं ख़्वाब भी है

एहतिशाम अख्तर

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ठहरे पानी में निहाँ एक हसीं ख़्वाब भी है
और उसी झील में अक्स-ए-रुख़-ए-महताब भी है

दश्त-ए-तन्हाई के तपते हुए वीराने में
तेरी यादों का है इक पेड़ जो शादाब भी है

पार करना बड़ा मुश्किल है कि ये बहर-ए-हवस
कहीं गहरा है बहुत और कहीं पायाब भी है

उस की तस्वीर में आँखों में बसा लूँ कि ये शय
लाख अर्ज़ां सही मेरे लिए नायाब भी है

यूँ तो लगता है समुंदर बड़ा ख़ामोश मगर
उस के सीने में निहाँ कर्ब का सैलाब भी है

ये तमन्नाओं की सूखी हुई नद्दी 'अख़्तर'
अपनी आँखों में सजाए हुए इक ख़्वाब भी है