था पास अभी किधर गया दिल
ये ख़ाना-ख़राब घर गया दिल
ख़्वार ऐसा हुआ बुताँ के पीछे
नज़रों से मिरी उतर गया दिल
शबनम की मिसाल रोते रोते
उस बाग़ से चश्म-ए-तर गया दिल
जूँ ख़िज़्र रहा हमेशा तन्हा
ऐसे जीने से भर गया दिल
क्या पूछते हो ख़बर तुम उस की
यक उम्र हुई कि मर गया दिल
मरते मरते भी ये जवाँ-मर्ग
सूराख़ जिगर में कर गया दिल
था दुश्मन-ए-जाँ बग़ल में 'हातिम'
जाने दे बला से गर गया दिल
ग़ज़ल
था पास अभी किधर गया दिल
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम