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तेरी यादों ने कभी चैन से जीने न दिया | शाही शायरी
teri yaadon ne kabhi chain se jine na diya

ग़ज़ल

तेरी यादों ने कभी चैन से जीने न दिया

मसूदा हयात

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तेरी यादों ने कभी चैन से जीने न दिया
मैं ने चाहा तो मुझे ज़हर भी पीने न दिया

यूँ ही बन बन के बिगड़ते रहे आईन-ए-वफ़ा
बे-सहारों को सहारा तो किसी ने न दिया

ग़म तो ग़म जोश-ए-मसर्रत ने बढ़ाया वो जुनूँ
चाक-ए-दामाँ किसी उनवान भी सीने न दिया

ज़िंदगी ग़म से सँवरती है ये माना लेकिन
मंज़िल-ए-ग़म में सहारा तो किसी ने न दिया

आज क्यूँ आ गए तुम दर्द का दरमाँ बन कर
जाम-ए-फ़ुर्क़त भी मुझे चैन से पीने न दिया

तेरे मिलने की ख़ुशी तेरे बिछड़ने का मलाल
ग़मज़ा-ए-शाम-ओ-सहर ने हमें जीने न दिया

किस से शिकवा करें वीरानी-ए-हस्ती का 'हयात'
हम ने ख़ुद अपनी तमन्नाओं को जीने न दिया