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तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं | शाही शायरी
teri yaaden bhi nahin gham bhi nahin tu bhi nahin

ग़ज़ल

तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं

यूसुफ़ तक़ी

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तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं
कितनी वीरान है ये आँख कि आँसू भी नहीं

मेरे दिल को मिरे एहसास को छू जाती थी
भीगे भीगे तिरे बालों की वो ख़ुशबू भी नहीं

हाए वो पहले-पहल तेरी जुदाई की घड़ी
अब तो पीने की कोई चाह कोई ख़ू भी नहीं

जो ग़म-ए-दहर की राहों को हसीं-तर कर दे
बहके बहके तिरे क़दमों का वो जादू भी नहीं

अब गुनहगार नज़र की है कहाँ जा-ए-पनाह
राह में दूर तलक कोई परी-रू भी नहीं