तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं
कितनी वीरान है ये आँख कि आँसू भी नहीं
मेरे दिल को मिरे एहसास को छू जाती थी
भीगे भीगे तिरे बालों की वो ख़ुशबू भी नहीं
हाए वो पहले-पहल तेरी जुदाई की घड़ी
अब तो पीने की कोई चाह कोई ख़ू भी नहीं
जो ग़म-ए-दहर की राहों को हसीं-तर कर दे
बहके बहके तिरे क़दमों का वो जादू भी नहीं
अब गुनहगार नज़र की है कहाँ जा-ए-पनाह
राह में दूर तलक कोई परी-रू भी नहीं

ग़ज़ल
तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं
यूसुफ़ तक़ी