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तेरी याद का हर मंज़र पस-मंज़र लिखता रहता हूँ | शाही शायरी
teri yaad ka har manzar pas-manzar likhta rahta hun

ग़ज़ल

तेरी याद का हर मंज़र पस-मंज़र लिखता रहता हूँ

कुमार पाशी

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तेरी याद का हर मंज़र पस-मंज़र लिखता रहता हूँ
दिल को वरक़ बनाता हूँ और शब भर लिखता रहता हूँ

भरी दो-पहरी साए बनाता रहता हूँ मैं लफ़्ज़ों से
तारीकी में बैठ के माह-ए-मुनव्वर लिखता रहता हूँ

ख़्वाब सजाता रहता हूँ मैं बुझी बुझी सी आँखों में
जिस से सब महरूम हैं उसे मयस्सर लिखता रहता हूँ

छाँव न बाँटे पेड़ तो अपनी आतिश में जल जाता है
सिर्फ़ यही इक बात मैं उसे बराबर लिखता रहता हूँ

क्या बतलाऊँ 'पाशी' तुम को संग-दिलों की बस्ती में
मोती सोचता रहता हूँ मैं गौहर लिखता रहता हूँ