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तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा | शाही शायरी
teri ulfat mein na jaane kya se kya ho jaunga

ग़ज़ल

तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा

शोला हस्पानवी

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तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा
तू ने गर चाहा तो इक दिन मैं ख़ुदा हो जाऊँगा

क़त्ल कर के मत समझना मैं फ़ना हो जाऊँगा
जल के अपनी राख से फिर रूनुमा हो जाऊँगा

मैं किसी दरवेश के लब की दुआ हो जाऊँगा
बे-सहारा ज़िंदगी का आसरा हो जाऊँगा

रात-भर बैठा रहा में थाम कर यादों का हाथ
दिल को ख़दशा था कि मैं तुझ से जुदा हो जाऊँगा

सामने ठहरा हूँ तेरे जान ले पहचान ले
चल पड़ा तो बढ़ते बढ़ते फ़ासला हो जाऊँगा

वक़्त के सहरा में तुम पाओगे मेरे नक़्श-ए-पा
मैं अज़ल से ता-अबद इक सिलसिला हो जाऊँगा

मैं समा जाऊँगा ख़ुशबू की तरह हर फूल में
पत्ती पत्ती ग़ुंचा ग़ुंचा रूनुमा हो जाऊँगा

राह का पत्थर सही गर तू तराशेगा मुझे
देखते ही देखते मैं देवता हो जाऊँगा