तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है
आश्ना शक्ल हर हसीं की है
हुस्न से दिल लगा के हस्ती की
हर घड़ी हम ने आतिशीं की है
सुब्ह-ए-गुल हो कि शाम-ए-मय-ख़ाना
मद्ह उस रू-ए-नाज़नीं की है
शैख़ से बे-हिरास मिलते हैं
हम ने तौबा अभी नहीं की है
ज़िक्र-ए-दोज़ख़ बयान-ए-हूर ओ क़ुसूर
बात गोया यहीं कहीं की है
अश्क तो कुछ भी रंग ला न सके
ख़ूँ से तर आज आस्तीं की है
कैसे मानें हरम के सहल-पसंद
रस्म जो आशिक़ों के दीं की है
'फ़ैज़' औज-ए-ख़याल से हम ने
आसमाँ सिंध की ज़मीं की है
ग़ज़ल
तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़