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तेरी सम्त जाने के रास्तों में ज़िंदा हूँ | शाही शायरी
teri samt jaane ke raston mein zinda hun

ग़ज़ल

तेरी सम्त जाने के रास्तों में ज़िंदा हूँ

नज्मुस्साक़िब

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तेरी सम्त जाने के रास्तों में ज़िंदा हूँ
फूल हो चुका हूँ और ख़ुशबुओं में ज़िंदा हूँ

कौन है जो हर लम्हा सूरतें बदलता है
मैं किसे समझने के मरहलों में ज़िंदा हूँ

बंद सीपियों में हूँ मुंतज़िर हूँ बारिश का
मैं तुम्हारी आँखों के पानियों में ज़िंदा हूँ

तू फ़िराक़ की साअत ना-तमाम क़ुर्बत में
मैं विसाल का लम्हा दूरियों में ज़िंदा हूँ

अब तो ये दिलासा ही आख़िरी वसीला है
मैं तिरे ख़यालों की वादियों में ज़िंदा हूँ

वक़्त सोच तन्हाई कर्ब वहशतें इदराक
मेरा हौसला ऐसे क़ातिलों में ज़िंदा हूँ

अपनी मुनफ़रिद यकता बे-कनार हस्ती का
इक हिसार है जिस की वुसअतों में ज़िंदा हूँ