EN اردو
तेरी रंगत बहार से निकली | शाही शायरी
teri rangat bahaar se nikli

ग़ज़ल

तेरी रंगत बहार से निकली

मुज़्तर ख़ैराबादी

;

तेरी रंगत बहार से निकली
फूट कर लाला-ज़ार से निकली

दिल जो धोया तो तू नज़र आया
क्या ही सूरत ग़ुबार से निकली

छेड़ कर आज़मा लिया हम ने
तेरी आवाज़ तार से निकली

रूह मेरी तिरे तजस्सुस में
जिस्म-ए-ना-पाइदार से निकली

मुफ़्त बरबाद है मिरी हसरत
क्यूँ दिल-ए-बे-क़रार से निकली

बहर-ए-ताज़ीम हश्र बरपा है
किस की मय्यत मज़ार से निकली