तेरी रहमत ने कर दिया गुस्ताख़
''वर्ना पहले तो मैं न था गुस्ताख़
आप जो कुछ कहें सर आँखों पर
और मैं ने जो कुछ कहा गुस्ताख़
साफ़-गोई से काम लेता हूँ
तुम ने मुझ को समझ लिया गुस्ताख़
काट देते वो क्यूँ न हाथ मिरा
उन के दामन पे बढ़ चला गुस्ताख़
खुल गई आँख अब तो ऐ नर्गिस
और उन से नज़र मिला गुस्ताख़
मुँह पे कहते उसे नहीं बनता
वर्ना 'सरशार' है बड़ा गुस्ताख़
ग़ज़ल
तेरी रहमत ने कर दिया गुस्ताख़
जैमिनी सरशार