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तेरी रहमत ने कर दिया गुस्ताख़ | शाही शायरी
teri rahmat ne kar diya gustaKH

ग़ज़ल

तेरी रहमत ने कर दिया गुस्ताख़

जैमिनी सरशार

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तेरी रहमत ने कर दिया गुस्ताख़
''वर्ना पहले तो मैं न था गुस्ताख़

आप जो कुछ कहें सर आँखों पर
और मैं ने जो कुछ कहा गुस्ताख़

साफ़-गोई से काम लेता हूँ
तुम ने मुझ को समझ लिया गुस्ताख़

काट देते वो क्यूँ न हाथ मिरा
उन के दामन पे बढ़ चला गुस्ताख़

खुल गई आँख अब तो ऐ नर्गिस
और उन से नज़र मिला गुस्ताख़

मुँह पे कहते उसे नहीं बनता
वर्ना 'सरशार' है बड़ा गुस्ताख़