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तेरी निगाह-ए-नाज़ के बिस्मिल न होंगे हम | शाही शायरी
teri nigah-e-naz ke bismil na honge hum

ग़ज़ल

तेरी निगाह-ए-नाज़ के बिस्मिल न होंगे हम

मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी

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तेरी निगाह-ए-नाज़ के बिस्मिल न होंगे हम
हर रंग हर फ़ज़ा में तो शामिल न होंगे हम

इक बेवफ़ा से हम ने यहाँ तक कहा कभी
चाहेगा गर ख़ुदा भी तो हासिल न होंगे हम

तन्क़ीद करने वालों पे हँसना पड़ा हमें
मुश्किल वो चाहते हमें मुश्किल न होंगे हम

साहिल पे जाने वाले कभी लौटते नहीं
धोके से भी कभी कोई साहिल न होंगे हम

हम को है इश्क़ उस से जो है 'जौन-एलिया'
या'नी कि आप के कोई क़ाबिल न होंगे हम

हम ने तो अपने जिस्म में इक दिल को मारा है
क्या फिर भी सोचते हो कि क़ातिल न होंगे हम

माना शराब पीते हैं तो क्या हुआ मियाँ
या'नी कि आप कहते हैं फ़ाज़िल न होंगे हम