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तेरी मेहंदी में मिरे ख़ूँ की महक आ जाए | शाही शायरी
teri mehndi mein mere KHun ki mahak aa jae

ग़ज़ल

तेरी मेहंदी में मिरे ख़ूँ की महक आ जाए

राशिद अमीन

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तेरी मेहंदी में मिरे ख़ूँ की महक आ जाए
फिर तो ये शहर मिरी जान तलक आ जाए

बस पे ये सोच के चढ़ते हुए रह जाता हूँ
क्या ख़बर तेरे रवय्ये में लचक आ जाए

ऊँट और रेत मिरी ज़ात का हिस्सा थे मगर
अब क़दम घर से निकालूँ तो सड़क आ जाए

घर की दीवार पे करवा के सफ़ेदी पीली
चाहता हूँ मिरी आँखों में चमक आ जाए

ये भी मुमकिन है मिरा साया मिरा साथ न दे
ये भी मुमकिन है मुझे तेरी कुमक आ जाए