तेरी बातों का रस उदासी है
मेरे दामन में बस उदासी है
दूसरा जिस्म है ये मिट्टी का
मेरा पहला क़फ़स उदासी है
धड़कनें कारवाँ ख़राबों का
उन की हर इक जरस उदासी है
मुज़्महिल हूँ बड़े दिनों से मैं
मुझ को बाँहों में कस उदासी है
इब्न-ए-आदम के ग़म बताते हैं
कैसी कोहना-नफ़स उदासी है
क्या दिखाता किसी मसीहा को
मैं तो समझा था बस उदासी है
दिन ख़ुशी के निकाल कर देखे
उम्र का हर बरस उदासी है
दिल का 'अख़्तर' मज़ार सीने में
ग़म है गुम्बद कलस उदासी है
ग़ज़ल
तेरी बातों का रस उदासी है
जुनैद अख़्तर