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तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को | शाही शायरी
teri aankhon se mili jumbish meri tahrir ko

ग़ज़ल

तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को

योगेन्द्र बहल तिश्ना

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तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को
कर दिया मैं ने मुकम्मल ख़्वाब की ता'बीर को

जब मोहब्बत की कहानी लब पे आती है कभी
वो बुरा कहते हैं मुझ को और मैं तक़दीर को

उफ़ रे ये शोर-ए-सलासिल नींद सब की उड़ गई
दो रिहाई आ के तुम पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर को

ये अरक़-आलूदा पेशानी ये रंज-ओ-इज़तिराब
देख जा आ कर शिकस्त-ए-इश्क़ की तस्वीर को

ज़िंदगी यूँ उन के क़दमों पर निछावर मैं ने की
जैसे परवाना जला दे नूर पर तक़दीर को

ऐ मिरे मा'सूम क़ातिल इतनी मोहलत दे मुझे
चूम लूँ आँखों से अपनी बरहना शमशीर को

जिस ने चाहत के तजस्सुस में गँवा दी ज़िंदगी
वो कहाँ तोड़ेगा 'तिश्ना' ज़ुल्म की ज़ंजीर को