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तेरे साथ चलती हूँ इक जहान जाता है | शाही शायरी
tere sath chalti hun ek jahan jata hai

ग़ज़ल

तेरे साथ चलती हूँ इक जहान जाता है

रूमाना रूमी

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तेरे साथ चलती हूँ इक जहान जाता है
गर गुरेज़ करती हूँ तेरा मान जाता है

दर्द के हवाले से कितना बा-ख़बर है वो
मेरे दिल की बातों को कैसे जान जाता है

धूप ही तो मिलती है ज़र्द ज़र्द मौसम में
वहशतों के सहरा में साएबान जाता है

ख़ाक-ए-दिल तुझे ले कर अब कहाँ कहाँ जाऊँ
गर ज़मीं की होती हूँ आसमान जाता है

हिज्र के समुंदर से मैं गुज़र के आई हूँ
तेरे अब न मिलने से मेरा मान जाता है

जब रविश पे चलती हूँ मैं अदा-ए-वहशत की
फूल रूठ जाते हैं गुल्सितान जाता है

बज़्म में उसे 'रूमी' जब भी दफ़अ'तन देखूँ
ज़ब्त ही नहीं दिल से हर गुमान जाता है