तेरे क़ौल-ओ-क़रार की बातें
कुछ नहीं ए'तिबार की बातें
आप का मुँह है वर्ना हम सुनते
दुश्मन-ए-बद-शिआ'र की बातें
पूरा करना न करना वादे का
हैं तिरे इख़्तियार की बातें
देखने को तो भोले-भाले हो
हैं मगर होशियार की बातें
काम तेरे दग़ा फ़रेब के काम
बातें ईमान-दार की बातें
आप की बातें ऐ 'सफ़ी'-साहब
सब की सब हैं ख़ुमार की बातें

ग़ज़ल
तेरे क़ौल-ओ-क़रार की बातें
सफ़ी औरंगाबादी