तेरे पलट आने से दिल को और इक सदमा हुआ
वो नक़्श अब बाक़ी कहाँ जो था तेरा छोड़ा हुआ
यूँ आज आईने से मिल कर जिस्म सन्नाटे में है
इक और ही चेहरा था इस में कल तलक हँसता हुआ
दोनों कहीं मिल बैठ कर बह जाएँ पल भर के लिए
इस वक़्त से हट कर के हो दरिया कोई बहता हुआ
मश्कूक आँखों से निकलते हैं बिछड़ने के सिले
तू सोच ले मिल जाऊँगा मैं तो यहीं ठहरा हुआ
शाइर कहाँ था सिर्फ़ था जज़्बात का ताज-ए-तपिश
साहिल की सूखी रेत में अक्सर यही चर्चा हुआ
ग़ज़ल
तेरे पलट आने से दिल को और इक सदमा हुआ
मोनी गोपाल तपिश