तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की
ये इंतिहा है तिरे भरम के गुमान की
मुझ पे लगा के बंदिशें दुनिया-जहान की
ख़ुद सैर कर रहे हो मियाँ आसमान की
धंदा किए हैं आप ही बारूद का मियाँ
और बात कर रहे हैं जी अम्न-ओ-अमान की
बद-ख़ू-ओ-बद-ज़बान कहो बे-अदब कहो
तारीफ़ में ऐ दोस्तो हर 'हक़'-बयान की
ग़ज़ल
तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की
सय्यदा अरशिया हक़