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तेरे जल्वे से मिरे दिल का फ़रोज़ाँ होना | शाही शायरी
tere jalwe se mere dil ka farozan hona

ग़ज़ल

तेरे जल्वे से मिरे दिल का फ़रोज़ाँ होना

मोहम्मद नबी ख़ाँ जमाल सुवेदा

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तेरे जल्वे से मिरे दिल का फ़रोज़ाँ होना
एक ज़र्रे का है ख़ुर्शीद-ब-दामाँ होना

जब किसी ग़ुंचे का मुँह चूमती है मौज-ए-नसीम
याद आता है तिरे लब का गुलिस्ताँ होना

किस को फ़ुर्सत है कि हर बुत का जिगर चाक करे
वर्ना मुश्किल तो न था कुफ़्र का ईमाँ होना

अब कहाँ जाऊँ ये आशोब-ए-तमन्ना ले कर
दर्द को आ गया मिज़राब-ए-रग-ए-जाँ होना

साँस लेने को मुसाफ़िर की तरह ठहरे थे
हाए उस साया-ए-दीवार का ज़िंदाँ होना