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तेरे होंटों पे सजा है क्या है | शाही शायरी
tere honTon pe saja hai kya hai

ग़ज़ल

तेरे होंटों पे सजा है क्या है

अाज़म ख़ुर्शीद

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तेरे होंटों पे सजा है क्या है
तेरा हर रंग दुआ है क्या है

तेरे आँगन में लुटा है क्या है
वो भी बारिश में खुला है क्या है

रंग चढ़ते हैं उतर जाते हैं
मौसम-ए-हिज्र पता है क्या है

लोग अल्फ़ाज़ बदल लेते हैं
और चेहरों पे लिखा है क्या है

अपनी बर्बाद निगाही के सितम
एक दर और खुला है क्या है

मेरे हाथों की लकीरों पे न जा
तू ने ख़ुद ही तो लिखा है क्या है

ख़ुद से मिलता हूँ बिछड़ जाता हूँ
ख़्वाब ज़ंजीर हुआ है क्या है

नद्दियाँ ख़ुश्क हुई जाती हैं
कोई उस पार खड़ा है क्या है

मेरी आँखों से क़यामत बरसे
जो भी कुछ तू ने दिया है क्या है

अपने वक़्तों की ज़बाँ बोलता हूँ
फिर ये बाज़ार लगा है क्या है

मेरी बस्ती में उदासी कैसी
शहर की सम्त चला है क्या है

कितनी ख़ुश-पोश फ़ज़ा है 'ख़ुर्शीद'
तेरी आँखों का नशा है क्या है