तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
अपने बदन को देख ले छू कर मेरे बदन की मिट्टी है
ग़ैरों ने कुछ ख़्वाब दिखा कर नींद चुरा ली आँखों से
लोरी दे दे हार गई जो घर आँगन की मिट्टी है
सोच समझ कर तुम ने जिस के सभी घरौंदे तोड़ दिए
अपने साथ जो खेल रहा था उस बचपन की मिट्टी है
चल नफ़रत को छोड़ के 'अंजुम' दिल के रिश्ते जोड़ के 'अंजुम'
उस मिट्टी का क़र्ज़ उतारें अपने वतन की मिट्टी है

ग़ज़ल
तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
सरदार अंजुम