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तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई | शाही शायरी
tera afsana chheD kar koi

ग़ज़ल

तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई

अभिषेक कुमार अम्बर

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तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई
आज जागेगा रात-भर कोई

ऐसे वो दिल को तोड़ देता है
दिल न हो जैसे हो समर कोई

रात होते ही मेरे पहलू में
टूट कर जाता है बिखर कोई

चंद लम्हों में तोड़ सब रिश्ते
दे गया दर्द उम्र-भर कोई

इश्क़ करता नहीं हूँ मैं तुम से
कह के पछताया उम्र-भर कोई

मैं वफ़ा कर के बा-वफ़ा ठहरा
बेवफ़ा हो गया मगर कोई

काट कर पेट जोड़ेगा पैसे
तब ख़रीदेगा एक घर कोई

तेरे आने की आस में 'अम्बर'
देखता होगा रहगुज़र कोई