तेग़-ए-निगह-ए-दीदा-ए-ख़ूँ-ख़ार निकाली
क्यूँ आप ने उश्शाक़ पे तलवार निकाली
भूले हैं ग़ज़ालान-ए-हरम राह ख़ता से
तुम ने अजब अंदाज़ की रफ़्तार निकाली
धड़का मिरे नाले का रहा मुर्ग़-ए-सहर को
आवाज़ शब-ए-वस्ल न ज़िन्हार निकाली
हर घर में कहे रखते हैं कोहराम पड़ेगा
गर लाश हमारी सर-ए-बाज़ार निकाली
आख़िर मिरी तुर्बत से उगी है गुल-ए-नर्गिस
क्या बाद-ए-फ़ना हसरत-ए-दीदार निकाली
मैं वस्ल का साइल हूँ न वा'दे का तलब-गार
बातों में अबस आप ने तकरार निकाली
जल जाएगा ये ख़िर्मन-ए-हस्ती अभी ऐ दिल
सीने से अगर आह-ए-शरर-बार निकाली
दिल ले के भी 'रा'ना' का किया पास न अफ़्सोस
कुछ हसरत-ए-दिल तू ने न अय्यार निकाली
ग़ज़ल
तेग़-ए-निगह-ए-दीदा-ए-ख़ूँ-ख़ार निकाली
मर्दान अली खां राना