EN اردو
तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो | शाही शायरी
tazin-e-bazm-e-gham ke liye koi shai to ho

ग़ज़ल

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

;

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो
रौशन चराग़-ए-दिल न सही जाम-ए-मय तो हो

हम तो रहीन-ए-रिश्ता-ए-बे-गानगी रहे
सारे जहाँ से तेरी मुलाक़ात है तो हो

ग़म भी मुझे क़ुबूल है लेकिन ब-क़द्र-ए-शौक़
दिल का नसीब दर्द सही पय-ब-पय तो हो

फ़रियाद एक शोर है आहंग के बग़ैर
नाला मता-ए-दर्द सही कोई लय तो हो

ये क्या कि अहल-ए-शौक़ न अपने न आप के
या मौत या हयात कोई बात तय तो हो

है दूर हुस्न-ए-सिलसिला-ए-ज़ेर-ओ-बम की बात
पहले गुदाज़-ए-सीना सज़ा-वार-ए-नय तो हो

हर-चंद दो क़दम ही सही मंज़िल-ए-मुराद
ये मुख़्तसर सी राह मगर 'होश' तय तो हो