EN اردو
तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में | शाही शायरी
tazad achchha nahin tarz-e-bayan ka hum zabanon mein

ग़ज़ल

तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में

याक़ूब उस्मानी

;

तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में
हक़ीक़त को छुपाता जा रहा हूँ दास्तानों में

सभी तो आज बरगश्ता हैं अज़्मत-सोज़ पस्ती से
मचा रक्खी है इक हलचल ज़मीं ने आसमानों में

समझता हूँ मैं बे-मफ़्हूम सी आवाज़ शिकवे को
मुसीबत ख़ुद मदद करती है आ कर इम्तिहानों में

मिरा आईना-ए-एहसास हैराँ हो नहीं सकता
यक़ीं का नूर पैदा कर ही लेता है गुमानों में

बना रखा है बद-तर अज़ क़फ़स ख़ौफ़-ए-असीरी ने
सिवा तिनकों के अब क्या रह गया है आशियानों में

नया इक मा'बद-ए-उम्मीद भी ता'मीर करना है
अनादिल मोतकिफ़ कब तक रहेंगी गुलिस्तानों में

मिरी नैरंगियाँ छाने लगी हैं रंग-ए-महफ़िल पर
बहुत कुछ फ़र्क़ 'याक़ूब' आ चला है दास्तानों में