तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में 
हक़ीक़त को छुपाता जा रहा हूँ दास्तानों में 
सभी तो आज बरगश्ता हैं अज़्मत-सोज़ पस्ती से 
मचा रक्खी है इक हलचल ज़मीं ने आसमानों में 
समझता हूँ मैं बे-मफ़्हूम सी आवाज़ शिकवे को 
मुसीबत ख़ुद मदद करती है आ कर इम्तिहानों में 
मिरा आईना-ए-एहसास हैराँ हो नहीं सकता 
यक़ीं का नूर पैदा कर ही लेता है गुमानों में 
बना रखा है बद-तर अज़ क़फ़स ख़ौफ़-ए-असीरी ने 
सिवा तिनकों के अब क्या रह गया है आशियानों में 
नया इक मा'बद-ए-उम्मीद भी ता'मीर करना है 
अनादिल मोतकिफ़ कब तक रहेंगी गुलिस्तानों में 
मिरी नैरंगियाँ छाने लगी हैं रंग-ए-महफ़िल पर 
बहुत कुछ फ़र्क़ 'याक़ूब' आ चला है दास्तानों में
        ग़ज़ल
तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में
याक़ूब उस्मानी

