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तवज्जोह उन की क्या कम हो गई है | शाही शायरी
tawajjoh unki kya kam ho gai hai

ग़ज़ल

तवज्जोह उन की क्या कम हो गई है

जलील शेरकोटी

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तवज्जोह उन की क्या कम हो गई है
बला-ए-जाँ शब-ए-ग़म हो गई है

ख़िरद का नूर क्या फैला जहाँ में
दिलों की रौशनी कम हो गई है

रही होगी कभी जन्नत ये दुनिया
मगर अब तो जहन्नम हो गई है

एटम-ज़ादों ये मेराज-ए-तरक़्क़ी
हरीफ़-ए-इब्न-ए-आदम हो गई है

शिकस्त-ए-ख़्वाब तंज़ीम-ए-गुलिस्ताँ
दलील-ए-अज़्म-ए-मोहकम हो गई है

ख़ज़फ़ का मोल जब से बढ़ गया है
सदफ़ की आबरू कम हो गई है

कभी वक़्फ़-ए-तरब थी ज़िंदगानी
मगर अब सिर्फ़ मातम हो गई है