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तौर बे-तौर हुए जाते हैं | शाही शायरी
taur be-taur hue jate hain

ग़ज़ल

तौर बे-तौर हुए जाते हैं

हबीब अशअर देहलवी

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तौर बे-तौर हुए जाते हैं
अब वो कुछ और हुए जाते हैं

छलकी पड़ती है निगाह-ए-साक़ी
दौर पर दौर हुए जाते हैं

तू न घबरा कि तिरे दीवाने
ख़ूगर-ए-जौर हुए जाते हैं

इश्क़ के मसअला-हा-ए-सादा
क़ाबिल-ए-ग़ौर हुए जाते हैं