तौर अपना है अलग ईं से अलग आँ से अलग
गो किसी तौर नहीं हिकमत-ए-यज़्दाँ से अलग
ज़ीस्त इक और भी है क़ैद-ए-रग-ए-जाँ से अलग
सुब्ह-ए-ताबाँ से जुदा शाम-ए-ग़रीबाँ से अलग
ज़ुल्मत-ए-शब की तरह नूर-ए-शबिस्ताँ से अलग
ग़म-ए-दौराँ से अलग इश्क़-ए-निगाराँ से अलग
गर तिरे वास्ते दिल धड़के तो ज़िंदा तू है
दिल की आवाज़ है आवाज़-परेशाँ से अलग
जब कभी फ़िक्र मिरा रम्ज़-ए-अना से उलझा
आलम इक और बना आलम-ए-इम्काँ से अलग
उम्र यूँ हम ने गुज़ारी है ज़माने में 'जमील'
न रम-ए-ज़ीस्त में शामिल न ग़म-ए-जाँ से अलग
ग़ज़ल
तौर अपना है अलग ईं से अलग आँ से अलग
सय्यद जमील मदनी